बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से By Sher << मैं अपनी ख़ुशियाँ अकेले म... तुम्हारे दर्द से जागे तो ... >> बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से दिल-ए-नाशाद को हम इस तरह पुर-शाद करते हैं Share on: