भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे By Sher << दर्द के मौसम का क्या होगा... बस एक रात ठहरना है क्या ग... >> भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं Share on: