बिखरते जिस्म ले कर तुंद तूफ़ानों में बैठे हैं By Sher << आलम से बे-ख़बर भी हूँ आलम... हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे... >> बिखरते जिस्म ले कर तुंद तूफ़ानों में बैठे हैं कोई ज़र्रे की सूरत है कोई टीले की सूरत है Share on: