हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ By Sher << बिखरते जिस्म ले कर तुंद त... आदमी के लिए रोना है बड़ी ... >> हम तो उस पस्ती-ए-एहसास पे जीते हैं जहाँ ये भी मालूम नहीं जीत है क्या मात है क्या Share on: