बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में By Sher << झलक थी या कोई ख़ुशबू-ए-ख़... अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ ... >> बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में इंसाँ की ज़िंदगी का अजब बंदोबस्त था Share on: