चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं By Sher << आज तो शम्अ हवाओं से ये कह... गुज़रते पत्तों की चाप होग... >> चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें Share on: