चारागर ख़ूब समझता है कि इन ज़ख़्मों को By Sher << घर हमेशा तिरे आईने का आबा... चमन को आग लगावे है बाग़बा... >> चारागर ख़ूब समझता है कि इन ज़ख़्मों को कोई मरहम नहीं नश्तर ही शिफ़ा देते हैं Share on: