दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मिरी By Sher << धूप बोली कि मैं आबाई वतन ... चाँद भी हैरान दरिया भी पर... >> दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत नहीं मिरी हर-चंद इस जहाँ के लिए ना-गुज़ीर मैं Share on: