धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा By Sher << दो अलग लफ़्ज़ नहीं हिज्र ... दर-अस्ल इस जहाँ को ज़रूरत... >> धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा मैं ने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी Share on: