जो चश्म-ए-दिल-रुबा के वस्फ़ में अशआ'र लिखता हूँ By Sher << कटती किसी तरह से नहीं ये ... जाँ खपाते हैं ग़म-ए-इश्क़... >> जो चश्म-ए-दिल-रुबा के वस्फ़ में अशआ'र लिखता हूँ तो हर हर लफ़्ज़ पर अहल-ए-नज़र इक साद करते हैं Share on: