दिन-रात पड़ा रहता हूँ दरवाज़े पे अपने By Sher << इश्क़ के कूचे में जब जाता... बंद कलियों की अदा कहती है >> दिन-रात पड़ा रहता हूँ दरवाज़े पे अपने इस ग़म में कि कोई कभी आता था इधर से Share on: