ऐ नवा-साज़-ए-तमाशा सर-ब-कफ़ जलता हूँ मैं By Sher << मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनू... हूर पर आँख न डाले कभी शैद... >> ऐ नवा-साज़-ए-तमाशा सर-ब-कफ़ जलता हूँ मैं इक तरफ़ जलता है दिल और इक तरफ़ जलता हूँ मैं Share on: