रह-ए-हयात में लाखों थे हम-सफ़र 'एजाज़' By Sher << हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल... मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की... >> रह-ए-हयात में लाखों थे हम-सफ़र 'एजाज़' किसी को याद रखा और किसी को भूल गए Share on: