मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ By Sher << रह-ए-हयात में लाखों थे हम... दिल की जागीर में मेरा भी ... >> मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना Share on: