एक दर्द-ए-हस्ती ने उम्र भर रिफ़ाक़त की By Sher << गुमाँ न क्यूँकि करूँ तुझ ... जिस की अदा अदा पे हो इंसा... >> एक दर्द-ए-हस्ती ने उम्र भर रिफ़ाक़त की वर्ना साथ देता है कौन आख़िरी दम तक Share on: