शजर से बिछड़ा हुआ बर्ग-ए-ख़ुश्क हूँ 'फ़ैसल' By Sher << तू ख़्वाब-ए-दिगर है तिरी ... रोज़ आसेब आते जाते हैं >> शजर से बिछड़ा हुआ बर्ग-ए-ख़ुश्क हूँ 'फ़ैसल' हवा ने अपने घराने में रख लिया है मुझे Share on: