फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन By Sher << वो सुब्ह को इस डर से नहीं... वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की त... >> फ़ज़ा तबस्सुम-ए-सुब्ह-ए-बहार थी लेकिन पहुँच के मंज़िल-ए-जानाँ पे आँख भर आई Share on: