सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़' By Sher << ये मेरे गिर्द तमाशा है आँ... मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी... >> सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़' क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया Share on: