ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना By Sher << होश आया तो कहीं कुछ भी न ... ख़ाक-ए-'शिबली' से... >> ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना Share on: