ग़ुस्सा क़ातिल का न बढ़ता है न कम होता है By Sher << गुलों से खेल रहे हैं नसीम... घर को छोड़ा है ख़ुदा जाने... >> ग़ुस्सा क़ातिल का न बढ़ता है न कम होता है एक सर है कि वो हर रोज़ क़लम होता है Share on: