हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद By Sher << फिर उस गली से अपना गुज़र ... सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे... >> हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद गुस्ताख़ी-ए-फ़रिश्ता हमारी जनाब में Share on: