हैं दैर-ओ-हरम में तो भरे शैख़-ओ-बरहमन By Sher << रौशनी उन दिनों की बात है ... छेड़ कर जैसे गुज़र जाती ह... >> हैं दैर-ओ-हरम में तो भरे शैख़-ओ-बरहमन जुज़ ख़ाना-ए-दिल कीजिए फिर क़स्द किधर का Share on: