हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं By Sher << ऐ 'नूह' न तर्क-ए-... उठ कर चले गए तो कभी फिर न... >> हज़ार रस्ते तिरे हिज्र के इलाज के हैं हम अहल-ए-इश्क़ ज़रा मुख़्तलिफ़ मिज़ाज के हैं Share on: