हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार By Sher << मिसाल-ए-शम्अ जला हूँ धुआँ... रक़ीब दोनों जहाँ में ज़ली... >> हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार हवा के हाथ में इक आब-दार ख़ंजर था Share on: