हर-दम बदन की क़ैद का रोना फ़ुज़ूल है By Sher << जिसे परछाईं समझे थे हक़ीक... हँसना रोना पाना खोना मरना... >> हर-दम बदन की क़ैद का रोना फ़ुज़ूल है मौसम सदाएँ दे तो बिखर जाना चाहिए Share on: