कितनी बे-रंग थी दुनिया मिरे ख़्वाबों की 'जमील' By Sher << मालूम हुआ कैसे ख़िज़ाँ आत... 'हसन-जमील' तिरा घ... >> कितनी बे-रंग थी दुनिया मिरे ख़्वाबों की 'जमील' उस को देखा है तो आँखों में उजाला हुआ है Share on: