हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया By Sher << तुम्हारी याद में जीने की ... टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा... >> हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता Share on: