इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का By Sher << मैं टूटने देता नहीं रंगों... देखूँ वो करती है अब के अल... >> इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का आख़िर कहीं तो ख़त्म हो वीराना दश्त का Share on: