ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है? By दुआ, Sher << वहम ही वहम में अपनी हुई औ... उस को दुनिया और न उक़्बा ... >> ज़बाँ पे शिकवा-ए-बे-मेहरी-ए-ख़ुदा क्यूँ है? दुआ तो माँगिये 'आतिश' कभी दुआ की तरह Share on: