जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है By Sher << हर शख़्स को फ़रेब-ए-नज़र ... फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि ... >> जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है ख़ून बन जाए तो फिर ठंडा करेंगे Share on: