कभी सय्याद का खटका है कभी ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ By Sher << बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेह... फैला हुआ है जिस्म में तन्... >> कभी सय्याद का खटका है कभी ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ बुलबुल अब जान हथेली पे लिए बैठी है Share on: