कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते By Sher << मिरे बदन में खुले जंगलों ... वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई ... >> कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते Share on: