मिरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है By Sher << जिस रोज़ मैं गिनता हूँ ति... कभी तो शाम ढले अपने घर गए... >> मिरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है मुझे सँभाल के रखना बिखर न जाऊँ में Share on: