कहीं शेर ओ नग़्मा बन के कहीं आँसुओं में ढल के By Sher << क़ैद की मुद्दत बढ़ी छुटने... शायद जड़ों के ज़हर ने शाख... >> कहीं शेर ओ नग़्मा बन के कहीं आँसुओं में ढल के वो मुझे मिले तो लेकिन कई सूरतें बदल के Share on: