क़ैद की मुद्दत बढ़ी छुटने की जब तदबीर की By Sher << कमाल-ए-हुस्न है हुस्न-ए-क... कहीं शेर ओ नग़्मा बन के क... >> क़ैद की मुद्दत बढ़ी छुटने की जब तदबीर की रोज़ बदली जाती हैं कड़ियाँ मिरी ज़ंजीर की Share on: