कारवाँ से जो भी बिछड़ा गर्द-ए-सहरा हो गया By Sher << जब अधूरे चाँद की परछाईं प... किताब-ए-ज़िंदगी की ये मुक... >> कारवाँ से जो भी बिछड़ा गर्द-ए-सहरा हो गया टूट कर पत्ते कब अपनी शाख़ पर वापस हुए Share on: