ख़ुद अपने आप से लर्ज़ां रही उलझती रही By Sher << उजालती नहीं अब मुझ को कोई... ऐ शैख़ वो बसीत हक़ीक़त है... >> ख़ुद अपने आप से लर्ज़ां रही उलझती रही उठा न बार-ए-गराँ रात की जवानी से Share on: