ख़ौफ़ ऐसा है कि हम बंद मकानों में भी By Sher << ख़्वाब मुट्ठी में लिए फिर... कल शजर की गुफ़्तुगू सुनते... >> ख़ौफ़ ऐसा है कि हम बंद मकानों में भी सोने वालों की हिफ़ाज़त के लिए जागते हैं Share on: