कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को By Sher << सुनने में आ रहे हैं मसर्र... न हम वहशत में अपने घर से ... >> कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को शहर वाले मिरा मौज़ू-ए-सुख़न जानते हैं Share on: