क्या क्या न तिरे शौक़ में टूटे हैं यहाँ कुफ़्र By Sher << हाथ उठाता है दुआओं को फ़ल... सब्र की तकरार थी जोश ओ जु... >> क्या क्या न तिरे शौक़ में टूटे हैं यहाँ कुफ़्र क्या क्या न तिरी राह में ईमान गए हैं Share on: