लोग ज़िंदा नज़र आते थे मगर थे मक़्तूल By Sher << कभू बीमार सुन कर वो अयादत... ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़स... >> लोग ज़िंदा नज़र आते थे मगर थे मक़्तूल दस्त-ए-क़ातिल में ब-ज़ाहिर कोई शमशीर न थी Share on: