मैं दिन को शब से भला क्यूँ अलग करूँ सानी By Sher << इक घर बना के कितने झमेलों... बहुत लम्बी मसाफ़त है बदन ... >> मैं दिन को शब से भला क्यूँ अलग करूँ सानी ये तीरगी भी तो इक रौशनी का हिस्सा है Share on: