मौक़ूफ़ जुर्म ही पे करम का ज़ुहूर था By Sher << पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई... कुफ़्र-ओ-ईमाँ दो नदी हैं ... >> मौक़ूफ़ जुर्म ही पे करम का ज़ुहूर था बंदे अगर क़ुसूर न करते क़ुसूर था Share on: