मुफ़लिसों की बस्ती को बेकसी ने घेरा है By Sher << मेरी रातें भी सियह दिन भी... अपने लिए भी कोई रिआयत रवा... >> मुफ़लिसों की बस्ती को बेकसी ने घेरा है हर तरफ़ उदासी है ज़ुल्मतों का डेरा है Share on: