न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की By Sher << ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है... सियाही फेरती जाती हैं रात... >> न जाने क़ैद में हूँ या हिफ़ाज़त में किसी की खिंची है हर तरफ़ इक चार दीवारी सी कोई Share on: