ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब By Sher << वो दिल से कम ज़बाँ ही से ... न जाने क़ैद में हूँ या हि... >> ताज़ीर-ए-जुर्म-ए-इश्क़ है बे-सर्फ़ा मोहतसिब बढ़ता है और ज़ौक़-ए-गुनह याँ सज़ा के ब'अद Share on: