एहसास-ए-तीरगी था उसे रौशनी के बा'द By Sher << क्यूँ सर खपा रहे हो मज़ाम... बिखरे हुए ख़्वाबों की वो ... >> एहसास-ए-तीरगी था उसे रौशनी के बा'द इस ख़ौफ़ से चराग़ की लौ काँपती रही Share on: