पैरवी से मुमकिन है कब रसाई मंज़िल तक By Sher << दर्द को गुर्दा तड़पने को ... नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर... >> पैरवी से मुमकिन है कब रसाई मंज़िल तक नक़्श-ए-पा मिटाने को गर्द-ए-राह काफ़ी है Share on: