पलकों पे ग़म-ए-हिज्र के सब दीप जलाए By आँख, Sher << तो ही ज़ाहिर है तू ही बात... दरयाफ़्त कर के ख़ुद को ज़... >> पलकों पे ग़म-ए-हिज्र के सब दीप जलाए नींदों के शबिस्तान में भारी मिरी आँखें Share on: