प्यार से दुश्मन के वो आलम तिरा जाता रहा By Sher << रात-दिन बाज़ू-ए-मिज़्गाँ ... पड़ गई छींट तो इतना न ख़फ... >> प्यार से दुश्मन के वो आलम तिरा जाता रहा ऐसे लब चूसे कि बोसों का मज़ा जाता रहा Share on: